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8 Sept Avataran Diwas

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🎯संत रामपाल जी महाराज जी का संघर्ष🎯

 8 सितंबर 1951 को भारत की पावन धरती पर अवतरित हुए एक ऐसे संत का अवतरण हुआ जिन्होंने हम जीवों के उद्धार के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। सतज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने अपनी जान हथेली पर रख दी, नौकरी, घर परिवार सब कुछ त्याग दिया। ऐसे महान संत, जो परमार्थ के लिए अपना सर्वस्व वार दें, इस धरा पर यदा कदा ही प्रकट होते हैं। हम बात कर रहे हैं जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जिन्हे परमार्थ के मार्ग पर कदम रखने के बाद अनेकों संघर्षों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

गुरु पद प्राप्त करने के बाद संत रामपाल जी महाराज ने सत्संग व पाठ करना शुरू किया। लेकिन धीरे धीरे गुरु पद की जिम्मेदारियां इतनी बढ़ गई कि संत रामपाल जी महाराज को अपनी नौकरी से त्याग पत्र देना पड़ा।  

जब संत रामपाल जी महाराज ने नौकरी छोड़ी तब वह नौकरी ही उनके परिवार के निर्वाह का एकमात्र साधन थी पर अपने सतगुरु के आदेश का पालन करने के लिए और परमात्मा के बच्चों के उद्धार के लिए उन्होंने नौकरी त्याग दी। उन्होंने अपने परिवार तथा बच्चों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया और परमात्मा के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया।


संत रामपाल जी महाराज ने समाज का कल्याण करने के लिए गांव गांव जाकर तत्वज्ञान का प्रचार किया 
घर त्याग देने के बाद संत रामपाल जी कभी मुड़कर घर वापस नहीं गए। उन्होंने अपने कुछ भक्तों के सहयोग से गाँव गाँव, नगर नगर जाकर सतज्ञान का प्रचार किया। सर्व धर्मों के शास्त्रों का अध्ययन किया और उनमें से परमात्मा का सच्चा ज्ञान निकालकर भक्त समाज के सामने रख दिया। दिन रात सत्संग किये, पुस्तकें लिखी। 20-20 घंटे लगातार काम किया। समाज में व्यापत कुरीतियों तथा नकली संतो द्वारा फैलाये गए गलत ज्ञान पर दृढ़ लोगों ने परम संत और उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का बहुत विरोध किया पर सतगुरु जी द्वारा दिया गया परमेश्वर कबीर साहेब का ज्ञान ऐसा था जैसे तोप का गोला हो जिसके आगे कोई टिक नही सका।

कबीर - और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का करता चले मैदान।।

संत रामपाल जी के अद्वितीय ज्ञान और अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति से हारे हुए सब संत और महंत उनकी जान के दुश्मन बन गए। और संत रामपाल जी को धमकी भरे फ़ोन और पत्र आने लगे।
कुछ आर्य समाजी तत्वों ने बाकि संतों महंतों के साथ मिल कर संत रामपाल जी को जान से मारने व उनका प्रचार प्रसार बंद करवाने का निर्णय लिया। और संत रामपाल जी महाराज पर झूठे आरोप लगवाकर उन्हें जेल में डलवा दिया।
 बिना किसी जुर्म के 22 महीने जेल में रहने के बाद फिर उन्होंने अपना ज्ञान प्रचार शुरू किया l उसके बाद 
फिर सन 2014 में बरवाला कांड जैसी घटना करवा कर तब से आज तक संत रामपाल जी महाराज जेल में हैं। 

इस पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी ही पूर्ण संत हैं फिर चाहे वे जेल में ही क्यों न हों। परमार्थ के लिए, हम जीवों के उद्धार के लिए ही उनको जेल जाना पड़ा है। इस तत्वज्ञान के प्रचार के लिए उन्होंने इतना संघर्ष किया है, उसे समझकर संत जी से नाम उपदेश लेना हमारा परम कर्तव्य बनता है क्योंकि मोक्ष प्राप्त करना ही इस मानव जीवन का प्रथम कर्तव्य है। उनके त्याग और बलिदान को हमें व्यर्थ नहीं होने देना है क्योंकि 72 साल पहले हमारे लिए ही वे इस पृथ्वी पर वे अवतरित हुए हैं।


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