#कबीरसाहेब_की_पहचान
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Kabir is God
♦️संतों ने दी गवाही कबीर परमात्मा है♦️
कबीर परमात्मा 600 वर्ष पहले कलियुग में ही नहीं बल्कि हर युग में अपनी लीला करने अपनी यथार्थ जानकारी सत्य भक्ति विधि बताने आते हैं और दृढ़ भक्तों को मिलते हैं और ज्ञान उपदेश देने की इच्छा से अपने निजधाम सतलोक से चलकर के समान गति करके आते हैं
जिसका प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 82 मंत्र 1, 2, 3 में स्पष्ट हैं
कबीर परमात्मा अन्य रुप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अंतर्ध्यान हो जाते हैं उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचान पाते क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है वास्तव में परमात्मा आकार में है मनुष्य सदृश शरीर युक्त है।
जिसका प्रमाण
ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 20 मंत्र 1
ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 96 मंत्र 18
ऋग्वेद मण्डल नं 9 सुक्त 94 मंत्र 1 इस मंत्र में कहा है कि वह कबीर साहेब कवियों की तरह आचरण करता हुआ इधर-उधर जाता है यानि घूम-फिरकर कविताओं, लोकोक्तियों द्वारा तत्वज्ञान बताता फिरता है
जिज्ञासुओं को यथार्थ ज्ञान देता है उनकी ज्ञान से तृप्ति करता है वह ऊपर तीसरे मुक्ति धाम में विराजमान हैं ( सोम:तंतीयम् धामं विराजम् )
त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर मुनिंद्र नाम से प्रकट हुए तथा नल व नील को शरण में लिया उनकी कृपा से ही समुंद्र पर पत्थर तैरे धर्मदास जी के वाणी में इसका प्रमाण है
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार | जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर सिला तिराने वाले|| धन्य- धन्य सत्य कबीर भक्त की पीड़ मिटाने वाले
मीरा बाई पहले श्री कृष्ण जी की पूजा करती थी। एक दिन संत रविदास जी तथा परमात्मा कबीर जी का सत्संग सुना तो पता चला कि श्री कृष्ण जी नाशवान हैं। समर्थ अविनाशी परमात्मा अन्य है। संत रविदास जी को गुरू बनाया। फिर अंत में कबीर जी को गुरू बनाया। तब मीरा बाई जी का सत्य भक्ति बीज का बोया गया।
गरीब, मीरां बाई पद मिली, सतगुरु पीर कबीर।
देह छतां ल्यौ लीन है, पाया नहीं शरीर।।
संत गरीबदास जी को शरण में लेना
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया, जाती जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ|
गरीबदास जी ने इस वाणी में स्पष्ट किया है कि परमेश्वर कबीर जी ने हम हम सबको दादू जी, नानकदेव जी तथा इब्राहिम सुल्तान को पार किया वह परमात्मा काशी शहर में जुलाहा नाम से प्रसिद्ध हुआ है वह अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों का सृजनहार है
आदरणीय धर्मदास जी को कबीर परमात्मा सतलोक से आकर मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले।
जिसका प्रमाण उनकी ये वाणी देती है।
"आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।
सत्यलोक से चल कर आए, काटन
जम की जंजीर।।"
'कबीर सागर' में प्रमाण है कि त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी मुनिंद्र ऋषि के रूप में आए थे विभीषण और मंदोदरी को शरण में लेकर उन्हें नाम उपदेश देकर सत्य भक्ति प्रदान की पूरी लंका नगरी में केवल वे दोनों ही भक्ति भाव तथा साधु विचार वाले थे जिस कारण उनका अंत नहीं हुआ
परमेश्वर कबीर जी ही नरसिंह रुप धरकर आए थे और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की गरीब प्रहलाद भक्त कुं दई कसौटी, चौरासी बर ताया ।
नरसिंह रुप धरे नारायण,खंभ फाड़कर आया
कबीर परमेश्वर जी जिंदा महात्मा के रूप में जम्भेश्वर जी महाराज (बिश्नोई धर्म प्रवर्तक) को समराथल में आकर मिले थे। अपना तत्वज्ञान समझाया। उन्होंने अपनी वाणी में प्रमाण दिया -
जो जिन्दो हज काबे जाग्यो, थलसिर(समराथल) जाग्यो सोई
वह परमात्मा जिन्दा रूप में थल सिर (समराथल) स्थान में आया और मुझे जगाया।
और वर्तमान में परमात्मा जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को मिले
1 मार्च सन् 1997 को
यह एक जनता के सामने उनकी लीला है जबकि वास्तविकता में संत रामपाल जी महाराज के रूप में कबीर परमात्मा ही तत्वदर्शी संत की भूमिका निभा रहे हैं
अतः सर्व विश्व के सभी मानव समाज से विनम्र निवेदन है कि अविलंब संत रामपाल जी महाराज के द्वारा बताए जा रहे ज्ञान को समझें सत्संग सुनें उनके द्वारा बताया जा रहा ज्ञान हमारे सभी धर्मों के पवित्र शास्त्रों से प्रमाणित ज्ञान है और पूर्ण मोक्ष मार्ग है
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संतों ने दी गवाही कि कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं
कविर्देव, कबीर परमेश्वर जिनके एक रोम कूप में करोड़ों सूर्यों जैसा प्रकाश है तथा मानव सदृश हैं, अति तेजोमय अपने वास्तविक शरीर के ऊपर हल्के तेजपुंज का चोला (भद्रा वस्त्र अर्थात् तेजपुंज का शरीर) डाल कर हमें मृत्यु लोक (मनुष्य लोक) में मिलता है क्योंकि उस परमेश्वर के वास्तविक स्वरूप के प्रकाश को चर्म दृष्टि सहन नहीं कर सकती।
परमेश्वर कबीर साहिब जी अपने ऋतधाम (सतलोक ) से आकर दृढ़ भक्तों, पुण्यात्माओं को मिलते हैं। उन्हें ज्ञान व नाम उपदेश देकर अपने निजधाम सच्चखण्ड (सतलोक) ले जाकर वहां की सर्व स्थिति से परिचित करवाकर पुनः पृथ्वी पर छोड़ते है। वे प्यारी भक्त आत्माएँ परमात्मा की आँखों देखी जानकारी अपने अनुभव की वाणियों में लिपिबद्ध करते है।
परमात्मा की गवाही की उन संतों की वाणियों में प्रमाण है कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा है।
कबीर परमेश्वर, नानक जी को जिंदा बाबा के रूप में बेई नदी के किनारे मिले और उनके आग्रह करने पर सतलोक दिखाया तब श्री नानक जी ने उनकी महिमा का वर्णन करते हुए कहा,
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार
नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाख़ाक।”
कबीर साहेब को सतलोक में भगवान के रूप में देखने के बाद, श्री नानक जी के मुख से "वाहेगुरु" शब्द निकला।
"झांकी देख कबीर की नानक किती वाह,
वाह सिक्खां दे गल पड़ी कौन छुड़ावै ता।"
'वाहेगुरु' एक शब्द है जिसे अक्सर सिक्ख धर्म में ईश्वर, परम पुरुष या सभी के निर्माता के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज को,10 वर्ष की आयु में, कबीर परमेश्वर जिंदा रूप में सन् 1727 में नला नामक खेत में मिले और अपने सतलोक का साक्षी बनाया तब गरीब दास जी महाराज ने परमेश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए कहा,
"अनंत कोटि ब्रह्मांड का, एक रति नहीं भार सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।"
आदरणीय दादू साहेब जी जब 7 वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले तब उन्होंने परमेश्वर की महिमा आंखों देखी और अपनी अमृतवाणी में उच्चारित की,
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार ।।
42 वर्ष की आयु में श्री मलूक दास साहेब जी को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मिले तथा 2 दिन तक श्री मलूक दास जी अचेत रहे फिर निम्न वाणी उच्चारित की,
"चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर। दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।
जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।।"
धर्मदास साहेब जी बांधवगढ़, मध्यप्रदेश वालों को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जिंदा महात्मा के रूप में, मथुरा में मिले , सतलोक दिखाया तब उन्होंने परमेश्वर की महिमा गाते हुए कहा,
"आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।। सतलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।"
कबीर परमेश्वर, स्वामी रामानंद जी को 5 वर्ष के लीलामय शरीर में मिले और उन्हें गुरु धारण करके तत्वज्ञान समझाया व शरण में लिया,
स्वामी रामानंद जी की वाणी में प्रमाण -
बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप मैं, तुमहीं बोलन हार।।
वेदों में परमेश्वर कबीर जी के तीन गुण बताए गए हैं जिसमें से तीसरा गुण है कि वह कभी भी, कहीं भी प्रकट होकर अपनी वाणिओं द्वारा अपने ज्ञान का प्रचार प्रसार स्वयं करता है, वह नेक लोगों को मिलता है और अपना ज्ञान समझाता है।
कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि :-
रात गंवाई सोय के ,दिवस गवाया खाय,
हीरा जन्म अनमोल था कोड़ी बदले जाय।
हम हीरे जैसे अनमोल मनुष्य जीवन को बर्बाद कर रहे हैं। मनुष्य जीवन रहते हमें पूर्ण परमात्मा की पहचान कर सत्भक्ति करनी चाहिए।
आज पूर्ण परमात्मा कबीर जी की सही जानकारी संत रामपाल जी महाराज जी के पास है। अतः समय रहते आप भी संत रामपाल जी महाराज जी को पहचानो और उनके द्वारा बताई गई भक्ति साधना करके अपना मोक्ष करवाओ।
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