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Kabir Prakat Diwas 14 June
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Kabir Prakat Diwas
♦️14 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें गुरु के विषय में कबीर साहेब की शिक्षा♦️
हम सभी जानते हैं कि कबीर साहेब आज से लगभग 600 वर्ष पहले इतिहास के भक्तियुग में जुलाहे की भूमिका निभाकर गये थे। विडंबना है कि सर्व सृष्टि के रचनहार, भगवान स्वयं धरती पर अवतरित हुए और स्वयं को दास सम्बोधित किया। कबीर जी ने गुरु और शिष्य की परंपरा बनाए रखने के लिए स्वयं गुरु बना कर गुरु और शिष्य का अभिनय किया। कबीर साहेब जी ने अपनी वाणियों के माध्यम से भी गुरु और शिष्य के महत्व का वर्णन किया है। मनुष्य के जीवन में गुरु का क्या महत्व है। कबीर साहेब जी की वाणी है-
"तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार।
सद्गुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।।"
उपरोक्त वाणी में कबीर साहेब जी ने समझाया है कि तीर्थ में जाने से एक फल मिलता है वहीं किसी संत से मिलने पर चार प्रकार के फल मिलते हैं पर जीवन में अगर सच्चा गुरु (सतगुरु) मिल जाये तो समस्त प्रकार के फल मिल जाते हैं।
“या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
गुरु चरनन चित लाइये, जो पूर्ण सुख हेत।।”
कबीर साहेब जी ने इस दोहे के माध्यम से यह गया दिया है कि यह दुनिया कुछ ही दिनों की है इसलिए इससे मोह का सम्बन्ध नहीं जोड़ना चाहिए। अपने मन को गुरु के चरणों में लगाएं जो सब प्रकार का सुख देने वाला है। क्यूंकि गुरु ही परमात्मा तक पहुंचने का एकमात्र साधन हैं।
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।
गुरु और पारस के अंतर को ज्ञानी पुरुष बहुत अच्छे से जानते हैं। जिस प्रकार पारस का स्पर्श लोहे को सोना बना देता है कबीर जी ने बताया है की उसी प्रकार गुरु का नित्य साथ शिष्य को भी अपने गुरु के सानिध्य में महान बना देता है।
सात समुंदर की मसि करूँ, लेखनी करूँ बनराय।
धरती का कागज करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय।।
कबीर साहेब ने बताया है कि अगर सारी धरती को कागज बना लिया जाये, समस्त जंगल की लकड़ियों को कलम और सातों समुद्र के जल को स्याही बना लिया जाये तो भी गुरु की महिमा का वर्णन करना संभव नहीं है।
"कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।।”
कबीर साहेब जी ने बताया है कि बिना गुरु के हमें ज्ञान नहीं हो सकता है। राम, कृष्ण आदि अवतारों ने भी गुरु धारण किया था, गुरु के बिना किया गया नाम जाप, भक्ति व दान- धर्म सभी व्यर्थ है।
इस प्रकार अनेको दोहों के माध्यम से कबीर परमेश्वर ने गुरु परम्परा का जीवन मे बहुत महत्व बताया है, सच्चे गुरु की पहचान व आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 7:30-8:30 बजे।
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🎶14 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें सभी संतो की वाणियों में कबीर साहेब जी का विशेष गुणगान 🎶
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में आते हैं और अपनी महिमा का गुणगान स्वंम किया करते हैं। तथा सत भक्ति से अवगत कराकर सतलोक लेकर जाते हैं उन संतों ने कबीर साहिब जी की महिमा का कलम तोड़ वर्णन किया है।
जिन संतों को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी मिले हैं उनका नाम निम्न है:-
1.आदरणीय धर्मदास साहेब
2 आदरणीय गरीबदास साहेब
3. आदरणीय नानक साहेब
4.आदरणीय दादू साहेब
5. आदरणीय मूलक दास साहेब
और भी संतों को परमात्मा आकर सतलोक से मिले उन्होंने अपनी वाणियों में कहा है कि:-
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट ।।
उनको कबहु लागे नहीं, काल वज्र की चोट ।।
केहरी नाम कबीर का, विषम काल गजराज ।।
दादू भजन प्रताप से, भागै सुनत आवाज ।।
गरीब, सब पदवी के मूल हैं,सकल सिद्धि तीर ।।
दास गरीब सत्पुरुष भजो,अविगत कला कबीर ।।
गरीब जम जौरा जासे डरें, मिटें कर्म के लेख।।
अदली असल कबीर हैं, कुल के सतगुरु एक ।।
जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहा आस एहो आधार।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं।
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
इन संतों की वाणी से स्पष्ट होता है कि वह परमात्मा सतलोक से चलकर पृथ्वी लोक पर आकरअच्छी आत्माओं को मिलते हैं और इनका प्रमाण सभी सद्ग्रंथ में मिलता है।
जैसे कि ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं। इन सब से स्पष्ट होता है कि वह परमात्मा साकार है सशरीर है उसका नाम कबीर है। और वही पूर्ण परमात्मा है।
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